दुआओं, इबादत और बरकतों का महीना रमज़ान जैसा इस दफा है वैसा न कभी किसी ने देखा न सोचा। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में सहरी, इफ्तारी, दावतें और नमाज़ ए तरावीह के बाद कि वे महफिलें लॉकडाउन के चलते सन्नाटे में हैं। मुंबई के मुस्लिम इलाकों में मोहम्मद अली रोड एक ऐसी जगह है जहां रमज़ान के चलते विदेशों तक से लोग आते रहे हैं।
लज़ीज़ पकवानों की महक गैर मुस्लिमों को भी यहां की संकरी गलियों में ले आती है। लेकिन इन दिनों रात भर जश्न और रौशनी में नहाए मुस्लिम इलाकों में सन्नाटा पसरा है। इस दफा न तो लड़ियां हैं और न ही चमकीली झालरें। एक अनुमान के अनुसार लॉकडाउन के चलते रमज़ान के दिनों में मुंबई में हर दिन 200 करोड़ के कारोबार का नुकसान हो रहा है।
मुस्लिम इकॉनमी के जानकार और हलाल अथॉरिटी बोर्ड के महासचिव दानिश रियाज़ बताते हैं कि भिंडी बाज़ार, जावेरी बाज़ार से मांडवी तक लगभग पांच किलोमीटर का पैच है, जहां हर दिन 100 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इतने से इलाके में रिटेल की लगभग तमाम दुकानें मुसलमानों की हैं। इनमें इत्र, मिठाई, बेकरी, मेवा, होटल, गारमेंट और टूअर एंड ट्रेवल का बिज़नेस शामिल है। रमज़ान के चलते अरब देशों से भी व्यापारी यहां आया करते हैं और यहां के होटल उनसे ठसाठस भरे रहते हैं। वे लोग यहां रमज़ान के महीने में बिज़नेस करने आते रहे हैं।
फिर मिनारा मस्जिद वाली गली में ऐसे ऐसे पकवान बनते हैं जिनका ज़ायका विदेशों तक मशहूर है। खाऊ गली खास पकवानों के लिए दुनिया में मशहूर है। नान खताई, अफलातून और यहां के ज़ायकों की दुनिया दीवानी है। फल भी आम दिनों की बजाय इन दिनों मंहगे मिलते हैं। इन सब को मिला कर देखा जाए तो रमज़ान में हर दिन 200 करोड़ रुपये का कारोबार होता है जो कि लॉकडाउन के चलते ठप्प हो गया है।
रमज़ान तो है लेकिन रौनकें नहीं होंगी
सांताक्रूज़ में रहने वाले 63 वर्षीय सलीम खान बताते हैं कि सांताक्रूज़ में ही जन्मे, पले बड़े हुए। हमेशा से देखते आए हैं कि इफ्तार के बाद लोग बड़ी तादाद में खाने के लिए निकलते हैं। वह बताते हैं कि मोहम्मद अली रोड को इफ्तार पैराडाइज़ भी कहा जाता है। शवार्मा, कबाब, मुगलई चिकन सूप, मालपुए-रबड़ी, मावा जलेबी, फिरनी, नल्ली निहारी, बिरयानी, बैदा रोटी खाने के लिए उनके साथ उनके गैर मुस्लिम दोस्त भी जाते हैं।
सलीम खान के अनुसार जिनसे साल भर मिलना नहीं हो पाता है रमज़ान में हम उनसे मिलते हैं। इफ्तार की दावतों पर एक दूसरे के यहां जाते हैं। दावतें होती हैं। लॉकडाउन की वजह से रमज़ान के महीने का वो सामाजिक- सांस्कृतिक तानाबाना पूरी तरह टूट गया है। सलीम खान के अनुसार रमज़ान में दो-चार दावतें तो हर वर्ग के मुसलमान के घर रहती ही थीं। सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर इफ्तार पार्टियों का आयोजन होता था। जो इस दफा नहीं होगा। सलीम खान के अनुसार रमज़ान तो है लेकिन रौनक नहीं। और चारों ओर हालात भी ऐसे हैं कि मन बहुत अच्छा भी नहीं है।
तरावीह के बाद की महफिलों का लुत्फ नहीं होगा
मुंबई में मोहम्मद अली रोड के अलावा जोगेश्वरी, मीरा रोड, मिल्लत नगर, कुर्ला, बांद्रा ईस्ट-वेस्ट, वाशी, नेरुल, मुंबरा, भाइकल्लां, मालवानी भी मुस्लिम बहुल इलाके हैं। सभी का यही हाल है। मिल्ली काउंसिंल मुंबई के अध्यक्ष राशिद अज़ीम बताते हैं कि मुबई में नमाज़ ए तरावीह के बाद महफिलों का दौर होता है। चाय पर चाय चलती है। तरावीह की नमाज़ के बाद की महफिल का लुत्फ नहीं होगा इस बार।
अज़ीम के अनुसार मस्जिदों में एक साथ इबादत, सजदा करने में जो मज़ा है, एक साथ रोजा खोलने में जो मज़ा है, वो नहीं होगा इस दफा। रमज़ान में मस्जिदों में नमाज़ियों की तादाद दोगुनी हो जाती है। घर में महिलाओं की महफिल भी रहती हैं। दुआएं हो रही होती हैं, नमाज़ें हो रही होती हैं। लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग के चलते इस दफा ऐसा कुछ नहीं होगा।
इबादत का मौक़ा ज्यादा मिलेगा
कुछ लोग लॉकडाउन में भी सकारात्मक रवैया अपनाए हुए हैं। कुर्ला के रहने वाले असलम गाज़ी बताते हैं कि पहले सारा दिन भर दफ्तर में निकल जाता था। शाम में इफ्तारी और फिर ईशा की नमाज़ के बाद बाज़ार। चहल-पहल और दावतों का दौर ही चलता रहता था लेकिन इस दफा घर में सारा दिन क़ुरान पढ़ने और दुआएं करने का वक्त मिलेगा। सारा दिन परिवार के साथ इबादत में गुज़ारेंगे। बच्चों को रस्मों रवायतें बताएंगे।
असलम गाज़ी के अनुसार हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने सहरी के वक्त से लेकर 12 बजे तक दुकाने खोलने की इजाज़त दी है लेकिन रोज़े के वक्त कौन कितनी खरीदारी कर पाएगा पता नहीं। गरीबों के हालात सोच सकते हैं कि कैसे होंगे क्योंकि ठीक ठाक आर्थिक स्थिति वाले लोग भी इस बार खरीदारी सोच समझ कर कर रहे हैं। कारोबार बंद है,बिज़नेस ठप हैं। कैश नहीं है। दुआ है कि ईद तक लॉकडाउन खुल जाए।
कई सौ साल पुराना सामाजिक ताना बाना उधड़ा
मुंबई में बाकी शहरों की तरह इफ्तार पार्टी तो रहती ही है लेकिन बीते कई सालों से यहां सहरी पार्टी भी होने लगी थी। भाजपा के नेताओं ने इसकी शुरूआत की थी और ज्यादातर भाजपा के नेता सहरी पार्टी ही करते थे। सहरी-इफ्तारी में हिंदु-मुस्लिम दोनों बराबर शरीक होते हैं। यह आयोजन एक तरह से समाज को और मज़बूत करते थे। इस लॉकडाउन में रमज़ान की वजह से होने वाले वो सामाजिक ताना बाना उधड़ गया जो कई सौ सालों से मज़बूत बुना हुआ था।
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