कैथरिन प्राइस.बहुत से लाेगाें की तरह आप भी ‘वर्क फ्राॅम हाेम’ कर रहे हैं ताे आप अपना बहुत सा समय स्क्रीन के सामने बिता रहे हाेंगे। लाॅकडाउन और साेशल डिस्टेंसिंग के समय में स्क्रीन बाहरी दुनिया से जुड़ने के लिए हमारी ‘आंखें’ हाे गई हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि स्क्रीन के सामने कितना समय बिताना चाहिए? और क्या इस वक्त में स्क्रीन-लाइफ बैलेंस संभव है। संक्षेप में, यह इस वक्त भी संभव है। जानिए किस तरह यह बैलेंस रखा जा सकता है:
- तय करें कि क्या, कितना जरूरी है: आप घर पर कंप्यूटर के सामने पूरा दिन बिता देते हैं, ताे यह आकलन करने की जरूरत है कि उस काम काे कितने समय में निपटाया जा सकता था। व्यस्त हाेना ही प्राॅडक्टिव हाेना नहीं है। जाे जरूरी है, वही करें। फिर अन्य काम करें।
- ऑन स्क्रीन मूड कैसा है: स्क्रीन पर समय बिताते समय अपने मूड काे भांपें। यदि आप प्राॉडक्टिव, खुश और शांतचित्त महसूस करते हैं ताे जारी रखें। यदि यह गैरजरूरी और बुरा महसूस कराए ताे समय कम कर दें।
- ऑफ-स्क्रीन गतिविधियाें की सूची बनाएं: ऐसी चीजाें की सूची बनाएं, जिनके लिए डिवाइस की जरूरत नहीं पड़ती, जिनमें आपकाे मजा आता है। ताकि फ्री टाइममिलते ही आपके पास काम हाे। जैसे घूमना, मेडिटेशन, स्नान, कुकिंग या किताब पढ़ना, संगीत सुनना।
- दिन के शुरू और रात से पहले दूर रहें: यह अपवाद है, पर आप स्क्रीन पर किए गए काम से भावनात्मक या बाैद्धिक रूप से उत्तेजक हाे सकते हैं। उठते ही स्क्रीन से जुड़ने से दिनभर विचलित रह सकते हैं। रात में ऑन स्क्रीन रहने पर आंखाें पर असर पड़ सकता है।
- सीमाएं तय करें:स्क्रीन से शारीरिक दूरी बनाना जरूरी है। फाेन काे दूर रखकर चार्ज करें। फाेन के लिए भी ‘बेड टाइम’ तय करें। नाेटिफिकेशन काे कम से कम करें। समस्या पैदा करने वाले एप डिलीट कर दें। अलग-अलग डिवाइस के लिए अलग-अलग काम तय करें। जैसे ईमेल डेस्कटाॅप कंप्यूटर पर ही चेक करेंगे। साेशल मीडिया के लिए फाेन या आईपैड का ही इस्तेमाल करेंगे।
- नियमित ब्रेक लें: स्क्रीन से हटकर समय बिताएं। बिना फाेन घूमने जा सकते हैं। राेज डिजिटल विश्राम ले सकते हैं। हफ्ते में एक दिन या एक रात भी स्क्रीन से दूर रह सकते हैं।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2YeVYJI
No comments:
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box