अक्षय तृतीया आज है। इस बार अक्षय तृतीया पर भगवान परशुराम का जन्मोत्सव या पूजा के लिए मुहूर्त दोपहर 1 बजे तक ही रहेगा। तृतीया तिथि रविवार को दोपहर करीब 1.25 तक रहेगी। इसके बाद चतुर्थी तिथि शुरू हो जाएगी। इसलिए, आज दोपहर 1.25 से पहले ही दान और पूजा करने का विशेष महत्व है। ये समय देश में हर जगह के पंचांग के अनुसार अलग-अलग हो सकता है।
- वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की तीसरी तिथि को अक्षय तृतीया पर्व मनाया जाताा है। इस बार ये 26 अप्रैल यानी रविवार को पड़ रही है। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्रा के अनुसार इस दिन कोई भी शुभ काम बिना मुहूर्त देखे किया जा सकता है। इसलिए अक्षय तृतीया पर शादियां, खरीदारी और नए कामों की शुरुआत की जाती है। पं. मिश्रा बताते हैं कि इस दिन किए गए दान और पूजा का अक्षय फल मिलता है, लेकिन इस साल महामारी के कारण सामूहिक कार्यक्रम और तीर्थ स्नान नहीं करना चाहिए।
तीर्थ स्नान और दान का महत्व
अक्षय तृतीया पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान करने और श्रद्धा अनुसार दान का महत्व है। लेकिन महामारी के कारण इस बार घर पर ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंद डालकर नहा लेना चाहिए। ग्रंथों के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं। फिर भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की पूजा करनी चाहिए। फिर उन्हें कमल और गुलाब के फूल चढ़ाने चाहिए। इस दिन किसी मंदिर में जल दान और मौसम के अनुसार फल दान करने का भी विशेष महत्व है।
पूजा विधि
- किसी चौकी या कपड़े पर चावल रखकर उस पर भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की मूर्ति रखें। तस्वीर भी रख सकते हैं।
- भगवान को जल चढ़ाएं इसके बाद चंदन, अक्षत, फूल, रोली और मोली चढ़ाएं। फिर अबीर, गुलाल, कुमकुम और अन्य पूजा की सामग्री चढ़ानी चाहिए। इसके बाद भगवान को दीपक दर्शन करवाकर अगरबत्ती लगाएं।
- पूजा सामग्री चढ़ाने के बाद भगवान को मिठाई या फल का नैवेद्य लगाएं और प्रसाद बांट दें।
बृहस्पति संहिता: महामारी के कारण टाल दें शुभ काम
- पं. मिश्रा बताते हैं कि इस साल अक्षय तृतीया पर महामारी के कारण मांगलिक आयोजन और सामूहिक कार्यक्रमों से बचते हुए घर में ही पूजा-पाठ करनी चाहिए। इसके साथ ही विवाह और अन्य मांगलिक कार्यों को अगले शुभ मुहूर्त तक टाल देना चाहिए।
- इस पर्व पर श्रद्धा अनुसार दान का संकल्प लेकर दान दी जाने वाली सामग्रियों को निकालकर अलग रख लें और स्थिति सामान्य हो जाने पर उन चीजों को दान कर देना चाहिए। पं. मिश्रा ने बताया कि बृहस्पति संहिता ग्रंथ में ये उल्लेख है कि महामारी, प्राकृतिक आपदाओं और आपातकाल के दौरान मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए या आने वाले शुभ मुहूर्त पर टाल देना चाहिए।
3 अबूझ मुहूर्त में एक
वैदिक ज्योतिषीयों के अनुसार सालभर में 3 दिन ऐसे होते हैं जिन्हें अबूझ मुहूर्त कहा जाता है। यानी इन दिनों में बिना पंचांग या मुहूर्त देखे कोई भी शुभ काम किया जा सकता है। जो कि उगादी पर्व, अक्षय तृतीया और विजया दशमी है। इन 3 दिनों को अबूझ मुहूर्त कहा गया है। इन दिनों में बिना किसी पंचांग और मुहूर्त देखे कोई भी शुभ काम किया जा सकता है। वैसे तो हर महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया शुभ होती है, लेकिन वैशाख माह की ये तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्त में एक मानी गई है। पं. मिश्रा बताते हैं कि इस दिन सूर्य और चंद्रमा अपनी-अपनी उच्च राशि में होते हैं। इनके साथ ही जया तिथि का भी संयोग बनता है। इसलिए इस संयोग को अबूझ मुहूर्त कहा जाता है।
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