While you may not be able to enjoy game day with thousands of your closest friends, that doesn’t mean you can’t still enjoy tailgate-worthy fun at home with a smaller group of friends.
If You Are A Die-Hard Fan
The Pre-game musts: Make sure you have a good internet connection, agree on a platform and a meeting time and most importantly, make sure your cable or streaming service actually offers the channel the game is on.
If You Are In It For The Nachos
Serve up a Nacho Bar with all the fixings. Ground beef or turkey, you make the call, then double up on the toppings: salsa, guacamole, veggies and more.
If You Are In It For The Fun
The new fan favorite of the tailgate tribe is without a doubt 100 Coconuts + Tequila. Made with wholesome, quality ingredients that taste great, this perfection in a can is made of infused 100% agave tequila with 100% pure coconut water.
100% agave tequila is one of the cleanest liquors out there, and when consumed in moderation, can improve your overall health.
Naturally hydrates through the 100% natural ingredients and electrolytes.
Zero added sugar, or cholesterol or fat, no preservatives.
Railway Police Force launches 'Meri Saheli' for security of women in trains
The platform duty RPF personnel at the stopping stations en-route will keep watch over the concerned coaches and berths and if the need arises, they will interact with the lady passengers.
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October 31, 2020 at 06:05AM
PM Modi to inaugurate Seaplane service from Sabarmati Riverfront to Statue of U...
A parade, named the Ekta Diwas Parade, by the Central Armed Police Forces (CAPF) and the Gujarat Police, will be organised in the PM’s presence.
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October 31, 2020 at 06:05AM
Atlante 4 - 1 Dorados
Atlético San Luis 0 - 5 Mazatlán
Netherlands: Eerste Divisie
NAC Breda 0 - 1 NEC
Helmond Sport 1 - 1 MVV
Ajax II 1 - 4 Almere City
TOP Oss 0 - 2 De Graafschap
Nicaragua: Primera Division
Real Madriz 0 - 1 Deportivo Ocotal
Northern Ireland: Premiership
Linfield 2 - 1 Crusaders
Peru: Primera División
Sporting Cristal 1 - 0 Carlos Stein
Academia Cantolao 0 - 0 Atlético Grau
César Vallejo 2 - 0 Deportivo Llacuabamba
Sport Boys 3 - 2 Sport Huancayo
Alianza Lima 1 - 2 Deportivo Municipal
During his interaction with a cross-section of leading members of the academia, media and think-tanks, Shringla said India stands by France following the attacks of the past week in Paris and Nice.
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Since the formation of the hill council in 1995, the Congress had swept the polls thrice, while the Ladakh Union Territorial Front had won the elections in 2005.
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कोरोना महामारी के दौरान तमाम ऐसे किस्से सामने आए, जिनमें संतानों ने पिता को और भाई ने भाई को छूने से इनकार कर दिया। नेता भी दूर-दूर से कोरोना की लड़ाई लड़ते नजर आए। ऐसे लोगों और नेताओं के लिए भी सरदार पटेल एक नजीर हैं। उन्होंने अंग्रेजों से ही नहीं, बल्कि कोरोना जैसी तब की महामारी, प्लेग से भी जबरदस्त जंग लड़ी। दहशत भरे माहौल के बावजूद बेखौफ पटेल प्लेग के मरीजों के बीच जा पहुंचे। पेड़ के नीचे तंबू गाड़ दिया। आम लोगों को जमा किया और उनके बूते ही प्लेग को मात दे दी।
आम के पेड़ के नीचे पंडाल, वही घर था और वही दफ्तर
बात 1935 की है। गुजरात के मौजूदा आणंद जिले के बोरसद तालुका में प्लेग महामारी बन चुका था। सैकड़ों लोगों की मौत के बाद भी अंग्रेज सरकार इसे लेकर जरा भी गंभीर नहीं थी। तब तक खेड़ा और बारडोली आंदोलन के जरिए सरदार अंग्रेजों को आम लोगों की ताकत का स्वाद चखा चुके थे। मगर इस बार यही आम लोग मुसीबत में थे।
यों तो बोरसद में 1932 से ही प्लेग के मामले सामने आ रहे थे, लेकिन 1935 का जून आते-आते इस इलाके के 27 गांवों में 450 से ज्यादा लोग प्लेग का शिकार हो गए। यह खबर लगते ही पटेल ने सबसे पहले भास्कर पटेल नाम के डॉक्टर से हालात को गहराई से समझा। उन्होंने पता किया कि वहां मौजूद संसाधनों के हिसाब से वैज्ञानिक आधार पर क्या किया जा जाना चाहिए।
इसके बाद पटेल खुद बोरसद पहुंच गए। चारों ओर हाहाकार मचा था। तमाम गांववाले चूहों और बीमारों के डर से अपने घर छोड़कर खेतों में किसी तरह बसर कर रहे थे। ऐसे माहौल में पटेल ने एक आम के पेड़ के नीचे पंडाल लगा लिया। यही तंबू उनका दफ्तर और घर बन गया। पटेल ने यहीं से वॉलंटियर्स को भर्ती किया। उन्हें प्लेग के खिलाफ लड़ाई में शामिल जोखिम के बारे में बताया। यहीं से उन्होंने आस-पास के अस्पतालों में मरीजों को भर्ती कराने का इंतजाम किया। प्रभावित गांवों में बड़े स्तर पर सफाई अभियान चलाए। गांववालों को प्लेग के खतरों, उससे बचने के तरीकों और बीमार होने पर सावधानियों के बारे में बताने के लिए पर्चे बांटने शुरू किए।
एक-एक गांव में खुद गए पटेल
इस लड़ाई के दौरान सरदार पटेल एक-एक प्रभावित गांव में खुद पहुंचे। एक ऐसे समय में जब बीमारों के घरवाले ही मारे खौफ के इलाज कराने को तैयार नहीं थे, बीच मैदान-ए-जंग से पटेल की सरदारी ने लोकल वॉलेंटियर्स में ऐसा जोश भरा कि प्लेग की हार तय हो गई। और हुई भी।
महात्मा गांधी भी पहुंचे और सरदार की मदद करने को कहा
कुछ दिनों बाद ही महात्मा गांधी भी बोरसद पहुंचे। वे भी सरदार पटेल के साथ पेड़ के नीचे वाले तम्बू में रहे। गांधी भी प्रभावित गांवों में पहुंचे। घर-घर जाकर लोगों से मिले। गांधी ने लोगों से सफाई का ध्यान रखने और सरदार पटेल का साथ देने को कहा।
सरकार जांच को राजी नहीं हुई तो सरदार ने कमेटी बनाई, पता चला- ब्रिटिश इलाकों के गांवों में 4% टीके लगे, वहीं बड़ौदा राज में 60%
बोरसद में प्लेग के लगातार बढ़ते मामलों के बीच तत्कालीन बॉम्बे प्रांत सरकार ने अफसरों की अनदेखी की जांच कराने से इनकार कर दिया। जवाब में सरदार पटेल ने अपनी ओर से एक विशेषज्ञ कमेटी बनाकर जांच कराई। कमेटी ने सरदार पटेल के सरकार पर लगाए आरोपों और उसके जवाब में प्रांत सरकार के कांग्रेस पर लगाए प्रत्यारोपों की जांच की। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सरदार पटेल के आरोपों को सही पाया। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि प्लेग प्रभावित ब्रिटिश इलाकों के गांवों में केवल 4% और शहरों में 25% लोगों की टीके लगा गए थे, जबकि बड़ौदा राज के दोनों इलाकों में 60% लोगों को टीके लग चुके थे।
ब्रिटिश सरकार ने किए बड़े-बड़े दावे, 5 हजार टीके लगाए, 2500 रुपए किए खर्च
सरदार पटेल और इस लड़ाई में उनका साथ दे रहे दरबार गोपाल दास देसाई ने मार्च 1935 में महामारी के खिलाफ काम शुरू किया। इस बारे में अखबारों में खबरें छपी तो बॉम्बे सरकार ने 27 अप्रैल 1935 को पहली बार बयान जारी कर बड़े-बड़े दावे किए।
- प्लेग के मामलों का पता चलते ही सितंबर 1934 में ही चूहे पकडऩे के लिए लोकल बोर्ड ने प्लेग ड्यूटी अफसर तैनात कर दिया था।
- इसरामा नाम के गांव में सफाई और टीके लगाने के लिए इंस्पेक्टर को भेजा गया।
- फरवरी में एक और प्लेग ड्यूटी अफसर तैनात किया गया।
- इससे पहले 1932, 1933 और 1934 में भी कई बार स्पेशल प्लेग ड्यूटी अफसर भेजे गए।
- 5000 लोगों को टीके लगाए गए। मार्च तक बोर्ड ने बचाव कार्यों में 2,500 रुपए खर्च किए।
पटेल ने चुन-चुनकर दिए जवाब- एक डॉक्टर 5 हजार टीके कैसे लगाता, सिर्फ 1699 रुपए किए खर्च
सरदार पटेल और उनकी जांच कमेटी ने सरकार के सभी दावों के चुन-चुनकर जवाब दिए। उन्होंने लिखा, बोरसद में 1932 से ही प्लेग के मामले में सामने आ रहे हैं और सरकार को तीन साल बाद बयान देने की फुर्सत मिली। सरकार ने प्रभावित गांवों की संख्या नहीं बताई। 1932 में केवल एक गांव में प्लेग फैला था। 1933 में ऐसे गांव 10 हो गए। 1934 में संख्या बढ़कर 14 हो गई और 1935 तक 27 गांवों तक यह बीमारी फैल गई। मरने वालों की संख्या 52 से बढ़कर 589 हो गई। सरदार ने पूछा, अगर सरकार सही कदम उठाए होते तो क्या ऐसा होता?
- 1932 में तैनात स्पेशल मेडिकल अफसर के पास उपकरण ही नहीं थे। उसे सितंबर में भेजा गया, जबकि अप्रैल तक बड़ी संख्या में प्लेग के मामले सामने आ चुके थे।
- दिसंबर 1933 में प्लेग फैला लेकिन तब स्पेशल अफसर को मार्च 1934 में भेजा गया।
- टीकाकरण की जानकर अनदेखी की गई। एक ही मेडिकल अफसर को पूरे देहात की जिम्मेदारी दे दी गई।
- विरसद में एक ही मेडि़कल अफसर ने छह महीनों में 3 हजार टीके लगाए। इनमें भी 2 हजार टीके केवल पांच सप्ताह में ही लगाए गए।
- बोरसद में एक ही डॉक्टर तैनात किया गया, वह पांच हजार से टीके नहीं लगा सकता था।
- डॉ. शाह नाम के डॉक्टर ने इतनी खराब तरह से टीके लगा कि लोगों पर इनके बेहद परेशानी उठानी पड़ी, आखिर सरकार को केवल 400 टीके लगाने के बाद ही उन्हें हटाना पड़ा।
- बोरसद में प्लेग से प्रभावित इलाकों से 27 प्रवासियों को हटाने या आइसोलेट नहीं किया गया। जबकि तब तक 300 लोगों की मौत हो चुकी थी।
- महामारी फैलने के पांच महीनों बाद भी कलेक्टर या असिस्टेंट डायरेक्टर पब्लिक हेल्थ ने इलाके का दौरा नहीं किया।
- लोकल बोर्ड ने 2500 रुपए नहीं 2486 रुपए बचाव कार्य में खर्च किए। यह रकम प्रभावित इलाके में नहीं बल्कि पूरे जिले में खर्च की गई। वहीं इसमें 787 रुपए कॉलरा राहत की रकम थी।
महामारी में ऐसी ही अगुवाई कर दोबारा न्यूजीलैंड की पीएम बनीं जैसिंडा, ट्रंप कमजोर साबित हुए तो पिछड़े
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न कोरोना के खिलाफ अपनी जबरदस्त लड़ाई के बूते चुनाव में दोबारा शानदार जीत दर्ज की। वहीं, अमेरिका में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को कोरोना के खिलाफ अपने तौर तरीकों के चलते भारी नाराजगी झेलना पड़ रही है। राष्ट्रपति चुनाव में अब तक सामने आए सर्वे में डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन राष्ट्रपति ट्रंप से आगे नजर आ रहे हैं। कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी काफी तेजी से बढ़ी।
from Dainik Bhaskar /national/news/sardar-patel-jayanti-2020-sardar-vallabhbhai-patels-fight-against-plague-in-borsad-gujarat-in-1935-inspires-to-fight-against-corona-today-camp-under-a-mango-tree-mahatma-gandhi-also-visited-127864551.html
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100% agave tequila is one of the cleanest liquors out there, and when consumed in moderation, can improve your overall health.
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Nicaragua: Primera Division
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India is looking at Bhutan to help alleviate shortage of potatoes. The Directorate General of Foreign Trade (DGFT) on Friday issued an order allowing unhindered import of this key kitchen item from the tiny Himalayan nation without any licence till January 31, 2021.
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The Mumbai police said on Friday that Republic TV has not provided information sought as part of its probe into a show aired by the channel which allegedly incited disaffection against the city force. Republic TV’s executive editor Niranjan Narayanswamy, deputy editor Shawan Sen, anchor Shivani Gupta and reporter Sagarika Mitra were among those named accused.
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The Election Commission on Friday revoked the status of former Madhya Pradesh CM Kamal Nath as Congress’s star campaigner for by-elections in the state, for repeatedly violating the model code with his public utterances and “breaching ethical and dignified behaviour”.
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For generations, the U.S. Navy SEALS (Sea, Air, and Land) have set the standard for military special operations. Relied on for the toughest missions, these men are as notorious as their training, which begins at Naval Amphibious Base Coronado off the coast of California. Basic Underwater Demolition/SEAL training, or BUD/S for short, is the crucible in which SEALs are made, but the 24-week course, the first that SEAL candidates must endure, is actually only a fifth of the nearly two and a half years it takes before a man goes on his first mission.
The first phase, BUD/S, assesses candidates’ endurance and conditioning, water competency, camaraderie, and grit, culminating in “Hell Week.” The challenge has captivated men for years, and for good reason: Of an average 170-person class, around 30 make it to Week Five. Such severe attrition of some of the fittest men in the world is notable in its own right, but their day-to-day ordeals are something that has to be seen to be believed.
Darren McBurnett, age 50, a 24-year SEAL veteran, knows it better than almost anyone, having survived his own BUD/S, then returning to document the experience as a photographer and instructor prior to his retirement in 2017. He witnessed firsthand what it takes to survive arguably the most extreme military service in the world. “Everyone wants to be a Navy SEAL at the bars on Friday,” McBurnett says. “Once you get in there and realize how hard it is, all that goes away.”
McBurnett’s first book, Uncommon Grit, follows the first four weeks of Navy SEAL BUD/S training. Captured over 12 months and comprising more than 22,000 images, he was a man possessed—a camera in each hand, running behind, alongside, and in front of the most ambitious men in the military. Knocks came; he remembers being run over by boats, and at one point an expensive camera rig got swept from his hands and fell to the bottom of the sea. But he’s used to dealing with adversity, a story which he tells through images in Grit. He spoke with Men’s Journal to discuss what he learned along the way—and what you should know—about responding the the obstacles you’ll encounter in life.
1. Cut the Excuses
McBurnett saw a pattern while training and again while documenting candidates: “A lot made excuses,” he says. To leave the program, all candidates need to ring the bell and provide their reason for departure on their exit paperwork. “The biggest one, the most common is, ‘This job isn’t for me.’ ”
“Yes, this job is for you,” McBurnett says, “but you never got far enough in to see if you liked it or not.” What they were saying no to was the physical discomfort it takes to become a SEAL—the early-morning training, the cold water, the blisters so severe “chunks of skin are falling off.” In order to do all the “cool” stuff, like firing advanced weaponry and jumping out of airplanes, you had to deal with the short-term discomfort—and most can’t. “Most quit immediately when things get hard. That’s the kind of people we don’t want.” Lean into the discomfort. That persistence will always lead to greater things.
2. Shatter Your Ceiling
When other candidates see men quit, there’s an inward-looking, self-pitying look that spreads like poison. Once that seed is planted, it’s easy to go down the same route. McBurnett and other instructors’ jobs were to motivate by adding further suffering. It may seem counterintuitive, but by instigating a downward spiral, it can shock someone back to the team mentality. Remedial training, like doing thousands of pushups is not punishment per se. “It’s to let them know, ‘You still had the energy to keep going.” Ideally, it’s to demonstrate firsthand there’s always more left in the tank—an additional few reps, a faster lap. That fires them up, to see how much they can take. It’s what separates the men who are having a bad day—and everyone has a bad day, which is not a fatal condition—from those who don’t have the mental fortitude required to be a SEAL.
3. Believe in Your Inner Grit
“Every once in a while, you’ll have one of those unicorns show up,” McBurnett says. They’re the men who seem to get illogically stronger as they go through BUD/S. But they’re rare. It’s the guys who look like extras in 300—the ones who clock the fastest obstacle course laps, lead the runs, and swim laps around their peers—who drop out almost immediately upon reaching Hell Week. Take away warmth, sleep, cleanliness, and even air, and, to paraphrase a Johnny Cash song: ‘What’s all them muscles gonna do?’ The reality is, when the going gets tough, the true measure—the uncommon grit—of a man comes out. “It’s the mental war between the ears,” he says, that’s the most important characteristic of any SEAL candidate.
4. Utilize Your Team
Just making it to Hell Week, a misnomer for the five and a half days in the fourth week of BUD/S training, is an accomplishment. But to make it to its peak takes more than just being a pullup stud or part fish. “You need that sense of teamwork,” McBurnett says, which motivates you to push through your own pain and sleep-deprived haze to care about the men to your left and right. “That’s when you start to develop,” he adds. “You succeed as a team and you fail as a team.” More than conditioning, more than the possession of some of the most cutting-edge gear, it’s this characteristic that has both defined SEALs for generations and continues to fuel their successes. True, he says, there’s a long road of training ahead after Hell Week, but if you can make it past, you’ve demonstrated that you possess this critical tool in your toolset—and that’s a start.
Wildland fires are nothing new, but their current impact is dramatic. So far, in 2020, about 8.5 million acres have burned across the U.S. The financial toll is mind-boggling. In 2018, estimates of wildfire damage were about $18 billion. So far this year, nearly 33,000 people have been involved in fighting wildfires and 12 are dead—not including civilians. Most of these fires were preventable; approximately 87 percent of wildfires are caused by people. Responsible recreation during wildfire season can make a difference.
The vast majority of small fires are put out. But strong winds and critically dry fuels can turn a spark or neglected campfire into a “megafire,” which can have an extraordinary impact on local populations and the environment. Not only are forests and grasslands scorched, people lose homes, businesses and, tragically, their lives. Forest closures and hazardous air conditions devastate local economies. Fuels and forests have built up in the absence of natural wildfires over the past century, leading to a contagious tinderbox in many forestlands. Warmer, drier summers and increased human-caused ignitions have dramatically increased the length of the average fire season.
Susan Prichard, fire ecologist at University of Washington, says that the balance of human- versus lightning-started fires varies from place to place, year to year. But it’s important to understand that since most camping takes place at the height of fire season, fire irresponsibility coincides with wind and dry forests. “Even though it seems like the West is burning up (historically, there have always been wildfires), there are still many places under a fire deficit,” explains Prichard. “There will always be fire danger, and, while we’re very good at extinguishing them in this country (97 to 98 percent of fire starts are put out, it’s only 2-3 percent that get away), any fire, even a small one, has the potential to explode.”
Oddly enough, there’s evidence that the COVID-19 pandemic is fueling this season’s devastating blazes. Stacy Corless, Supervisor for Mono County, CA, reports that this summer, “our forests (like most others throughout the West, maybe the nation) saw big increases in visitation.” With many visitors new to camping and the outdoors, there was a likely gap in terms of understanding and following rules. “We saw some bad behavior—illegal campfires and camping, trash left behind, and lots of crowds,” Corless notes, “There seemed to be little awareness of wildfire danger, or the impact on the land.”
“Due to COVID, we’re seeing a lot of people on public lands this year that don’t typically camp or hike,” adds Tina Boehle, information officer for NIFC (National Interagency Fire Center). “It’s a great opportunity for education and we hope people fall in love with their public lands, use them responsibly and protect them for future generations. Before heading out, take the time to learn about outdoor and campfire safety and how to recreate responsibly.”
How can you be part of the solution? Most importantly, educate yourself on responsible recreation during wildfire season. Here are some expert tips:
Check fire restrictions before heading into the backcountry. Go to the land management website for your intended destination, whether it’s the U.S. Forest Service, BLM, National Park Service or state or regional park. Note whether open fires, or even propane stoves, are prohibited. Websites like inciweb.nwcg.gov alert you to active wildfires or wildfire closures.
If conditions allow a campfire, stick to established fire rings in established campsites. Don’t create your own fire ring as you might be impacting organic soil. Organic soil is essentially decomposed plant matter and can smolder for weeks. If it ignites an underground root system, it can pop up elsewhere, far from the original blaze.
If you do have a campfire, have a shovel and plenty of water on hand to ensure the ashes are cold to the touch anytime the fire is not attended. If you can’t put your hand into the ashes, the fire is not out. During fire season, consider stargazing rather than staring at flames.
Pack a collapsible bucket (we love the NRS Bail Pail). A packable pail won’t add much weight or bulk to your backcountry kit and simplifies dousing your campfire.
Be fire conscious. Ways that forest visitors unintentionally start fires include dragging trailer hitch chains (they spark when they hit pavement), parking on dry grass (the hot components of a vehicle can start a fire), shooting exploding targets, setting off fireworks, smoking cigarettes, or burning toilet paper. Carry a fire extinguisher and a saw in your vehicle as part of your backcountry essentials. Remember, fireworks are always prohibited on public lands.
When camping, be aware of alternative escape routes. Wildfires advance depending on fuel (vegetation), weather, and topography. A wind-driven fire can move very quickly, leaving little time between an evacuation order and the arrival of flames. Main roads or trails can be blocked. An evacuation plan can save precious minutes when it counts. Know where the closest body of water is located; you might need it in an emergency.
Don’t wait until the last minute to evacuate. Fires are unpredictable. A fire line can be breached by a single ember or falling tree. A spark can travel a mile in windy conditions to ignite dry fuel far from the original burn site.
Often wildfires burn slowly on flat ground, and then race uphill. Your escape route may be thwarted by fallen logs. Just because you can’t see flames doesn’t mean you’re not in danger.
Never fly a drone near a wildfire. Not only is it against the law, it puts lives at risk and slows down the effort to save forests and property as they can be deadly if they interfere or, worst case, collide with firefighting aircraft. Drones are always prohibited in national parks.
Sign up for reverse-911 emergency alerts. Make sure your phone allows your provider to push out messages with emergency information.
Respect fire closures. They’re put in place early and left in place after the flames and smoke dissipate to keep you safe. Even a decade after a burn, hazards remain, especially in the form of dead trees. Before you set up a campsite in any historically burned area, look up, down and all round for trees that could fail and impact your safety.
Fire closures protect not only the public, but firefighters too. Cruising forest roads during an emerging incident slows response times and can lead to a motor vehicle accident with crews, engines and heavy equipment.
Recently burned areas are extremely dangerous places due to fire-weakened trees that can fall on people, cars, trails or roads. Newly scorched earth can hide undermined ground that can bury and burn anyone walking in the wrong place. Areas may remain closed because steep slopes that have burned are susceptible to rock and landslides.
Jaimie Olle, acting Public Affairs Specialist for Deschutes National Forest, Oregon, says that there are two great ways to help fires. Donating to the Red Cross is a direct way to assist people who have been evacuated or have lost their homes. To support firefighters, donate to the Wildland Firefighter Foundation, an organization that directly supports wildland firefighters and their families. After a wildfire, there is plenty of restoration and repair work needed. Reach out to your local land management agencies to support efforts.
After speaking at the parade ground near the statue, PM Modi would interact with civil service probationers through video conferencing, the official said.
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Al Dhafra 3 - 1 Fujairah
Al Jazira 2 - 0 Kalba
Al Wasl 0 - 3 Al Nasr
USA: MLS
Minnesota United 2 - 1 Colorado Rapids
Dallas 2 - 1 Inter Miami
D.C. United\t 1 - 0 Columbus Crew
Portland Timbers 5 - 2 LA Galaxy
Los Angeles 2 - 1 Houston Dynamo
SJ Earthquakes 2 - 0 Real Salt Lake
He and Baltimore’s Hall of Fame quarterback were a top passing combination in the ’60s. But he may be best remembered for the pass that never came his way.
India remains engaged with the US for increasing predictability in the visa regime and to minimise the inconvenience being faced by those in the US or those who need to travel to the country for bona fide reasons, said the government days after the third Indo-US 2+2 ministerial dialogue.
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The special investigating team (SIT) of Mumbai police probing the TRP manipulation scam has summoned five investors of Republic TV to appear before them on Friday as part of its probe into channels accused of rigging viewership figures.
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3 नवंबर को मप्र उपचुनाव के लिए मतदान है। प्रत्याशी और पार्टियों ने प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है। लोग यह जानना चाहते है कि इस समय कहां-कौन मजबूत हैं। भास्कर ने चुनावी क्षेत्रों की जमीनी हकीकत का एनालिसिस किया और पता किया कि इन 28 सीटों पर किस पार्टी का प्रत्याशी मजबूत है और किसे कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है। फिलहाल जो समीकरण हैं, उनके मुताबिक, 13 सीटों पर भाजपा मजबूत नजर आ रही है। 10 पर कांग्रेस की बढ़त है और 5 सीटों पर कड़ी टक्कर है।
ग्वालियर-9 सीटें
अशोकनगर: भाजपा के जज्जी फंसते नजर आ रहे, आत्मविश्वास में हैं कांग्रेस की आशा
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए जजपाल सिंह जज्जी इस चुनाव में फंसते हुए नजर आ रहे हैं। वैसे ही निजी कारणों से विरोध झेल रहे हैं। साथ में बीजेपी में भीतरघात के कारण इन्हें दोहरा नुकसान उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस की आशा दोहरे पूरे आत्मविश्वास से मैदान में हैं। दलबदल को लेकर इलाके में बड़ा मुद्दा बन रहा है।
भांडेर: महेंद्र बौद्ध फैक्टर को छोड़ कांग्रेस के फूलसिंह बरैया की मजबूत स्थिति
भाजपा की रक्षा सिरोनिया के मुकाबले कांग्रेस के फूलसिंह बरैया की चुनावी रणनीति ज्यादा कारगर दिखाई दे रही है। दलित वोटों के साथ मुस्लिम वोट भी एकजुट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। रक्षा के पति के व्यवहार को लेकर एक वर्ग में नाराजगी है। पार्टी को डर है कि इसका असर वोटिंग में न दिखने लगे इसलिए पार्टी छोटे स्तर तक मीटिंग कर रही है। हालांकि, कांग्रेस को सिर्फ पूर्व मंत्री महेंद्र बौद्ध के चुनाव लड़ने से चिंता है, क्योंकि पूर्व मंत्री होने के साथ वह अच्छा जनाधार भी रखते हैं।
पोहरी: मुख्यमंत्री की चार सभाओं के बाद भाजपा प्रत्याशी ने बनाई बढ़त
भाजपा ने यहां जातिगत समीकरण देखते हुए सुरेश धाकड़ को उतारा है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी इसी समाज के हैं, लिहाजा उन्होंने समाज के प्रत्याशी को जितवाने के लिए चार सभाएं ले ली हैं। इससे पार्टी राहत महसूस कर रही है तो कांग्रेस मुश्किल में दिख रही है। यहां कांग्रेस ने ब्राह्मण कैंडिडेट हरिवल्लभ शुक्ला को टिकट दिया है। इस कारण ठाकुर वोट कांग्रेस के हाथ से छिटक सकता है।
करैरा: दलबदल मुद्दे के बीच तीन बार हारे कांग्रेस के प्रागीलाल जाटव की बढ़त
इस सीट पर मुकाबला कड़ा है। वोटर के मिजाज का ताजा इनपुट मिलने के बाद भाजपा काे नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ सकती है। कांग्रेस यहां सहानुभूति की नाव पर सवार होना चाहती है। दरअसल, बसपा के टिकट पर तीन बार चुनाव हार चुके प्रागीलाल जाटव को उसने इसी मकसद से उतारा है। इन्हें सहानुभूति मिलती भी दिख रही है। भाजपा से जसवंत जाटव प्रत्याशी हैं। अनुसूचित जाति की सीट पर दलबदल भी मुद्दा बनता जा रहा है।
मुंगावली: कांग्रेस बेहतर, सांसद के कारण भाजपा प्रत्याशी मुश्किल में
कांग्रेस से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके ब्रजेंद्र सिंह यादव अब भाजपा से भाग्य आजमा रहे हैं। यादव बहुल सीट पर उनका मुकाबला कांग्रेस के कन्हई राम लोधी से है। बूथ मैनेजमेंट भाजपा का ठीक चल रहा है, लेकिन निजी कारणों से ब्रजेंद्र सिंह मुश्किल में फंस गए हैं। कारण हैं सांसद डॉ. केपी यादव। उन्हें दिल से साथ ला पाने में वे अब तक सफल नहीं हो पाए हैं। भाजपा दोनों में तालमेल बैठा दे, तभी समीकरण बदल पाएंगे।
बमोरी: कांग्रेस प्रत्याशी अकेले पड़े, भाजपा प्रत्याशी की स्थिति मजबूत
ताजा समीकरणों से भाजपा प्रत्याशी और मंत्री महेंद्रसिंह सिसौदिया के समर्थक उत्साहित हैं। वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे और यहां सामंजस्य बैठाने में कामयाब होते दिख रहे हैं। उनका मुकाबला निर्दलीय चुनाव हार चुके कांग्रेस के केएल अग्रवाल से है, जो सिंधिया के बुलावे पर ही कांग्रेस में आए थे। अग्रवाल अब कांग्रेस में अकेले पड़ते दिखाई दे रहे हैं।
ग्वालियर पूर्व: भाजपा के मुन्ना को कांग्रेस के सिकरवार की कड़ी टक्कर
कांग्रेस से भाजपा में आए मुन्नालाल गोयल के सामने कांग्रेस ने सतीश सिकरवार को उतारा है जिससे मुकाबला कड़ा हो गया है। गोयल सरल स्वभाव, कथित आखिरी चुनाव की सहानुभूति और जातिगत समीकरण के बूते मैदान में है। सिकरवार के लिए ठाकुर वर्ग को छोड़ अन्य वोटर्स को साधना मुश्किल दिख रहा है। हालांकि उन्हें पिछला चुनाव हारने की सहानुभूति मिल सकती है।
ग्वालियर: भाजपा मजबूत, कांग्रेस को मुश्किल से मिला था प्रत्याशी
कांग्रेस शुरू से ही चिंताजनक स्थिति में है, क्योंकि यहां उम्मीदवार ढूंढ़ना तक मुश्किल हो गया था। आखिर में सुनील शर्मा को टिकट दिया गया। भाजपा से मंत्री प्रद्युम्न तोमर उम्मीदवार हैं। कमलनाथ सरकार के दौरान तोमर जिस अंदाज में लोगों के बीच दौरे करते रहे हैं, वह भी लोगों को याद है। सिंधिया जिस तरह से ‘अपना चुनाव’ बताकर ग्वालियर के लोगों से मिल रहे हैं, उसका फायदा प्रद्युम्न को हो सकता है।
डबरा: ‘आइटम’ से कांग्रेस को हो रहा नुकसान, इमरती देवी मजबूत
कमलनाथ के ‘आइटम’ वाले बयान ने यहां की चुनावी तस्वीर ही बदल दी। कांग्रेस से भाजपा में आई मंत्री इमरती देवी ने इसे मुद्दा बना दिया है। जो कांग्रेस गद्दार और दलबदल के मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर उठा रही थी, वह अब बैकफुट पर है। इमरती अपने ही अंदाज में इस मामले को उठाते हुए लोगों के बीच पहुंच रही है। कांग्रेस से उम्मीदवार सुरेश राजे कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं भर सके। स्थानीय नेता महसूस कर रहे हैं कि नाथ के बयान का फायदा भाजपा प्रत्याशी को होगा।
चंबल- 7 सीटें
मुरैना: दलित वोटबैंक और ब्राह्मण उम्मीदवार से बसपा के राजौरिया मजबूत
यहां बसपा के उम्मीदवार रामप्रकाश राजौरिया के मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। व्यापारिक पृष्ठभूमि वाले राजौरिया की छवि अच्छी है। इस सीट पर कांग्रेस से भाजपा में आए रघुराज कंसाना के सामने कांग्रेस ने राकेश मावई को उतारा है। ऐसे में गुर्जर वोट बंट सकता है। यह बात कांग्रेस और भाजपा दोनों को परेशान कर रही है, क्योंकि ब्राह्मण उम्मीदवार राजौरिया बसपा से उतरे हैं, जिसे बड़ी संख्या में दलित वोट भी मिलते आए हैं।
दिमनी: जातिगत समीकरण से भाजपा मुश्किल में, कांग्रेस फिलहाल यहां भारी
इस सीट पर जातिगत समीकरण हावी है। इससे भाजपा की मुश्किल बढ़ गई है। भाजपा के प्रत्याशी गिर्राज दंडोतिया के लिए ठाकुर वोट बैंक सबसे बड़ी चुनौती हैं, जो कांग्रेस प्रत्याशी रवींद्र तोमर के लिए एकजुट हो गए हैं। दलित वोट भी कांग्रेस तरफ जाता दिख रहा है तो दंडोतिया को ब्राह्मण वोटर्स को साधना ही मुश्किल हो रहा है। इसे देखते हुए भाजपा नई रणनीति बनाकर माहौल बदलने में जुटी है, क्योंकि 15 महीने के कार्यकाल में दंडोतिया इलाके के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाए।
सुमावली: गुर्जरों के दम पर भाजपा के एंदल सिंह कंसाना भारी
यहां दोनों ही पार्टियां दलबदल फैक्टर का सामना कर रही हैं और दोनों को भितरघात का डर है। कांग्रेस से भाजपा में आए मंत्री एंदल सिंह कंसाना के सामने कांग्रेस ने भाजपा से आए अजबसिंह कुशवाह को उतारा है। स्थिति दिलचस्प बन गई है, लेकिन यहां गुर्जर वोट बैंक निर्णायक माना जाता है। कंसाना गुर्जर हैं और उन्हें एक बार फिर इसका फायदा मिलता दिख रहा है। ऐसे में कांग्रेस को यहां चिंता सता रही है।
जौरा: कांग्रेस का नया चेहरा भाजपा के सूबेदार को दे रहा कड़ी टक्कर
पूर्व विधायक बनवारीलाल शर्मा के निधन से खाली हुई सीट पर कांटे का मुकाबला है। यहां भाजपा के पूर्व विधायक सूबेदारसिंह के सामने कांग्रेस ने नए चेहरे पंकज उपाध्याय को उतारकर चौंका दिया था। हालांकि, इसी फैसले ने अब कांग्रेस को मुकाबले में बराबरी पर ला खड़ा किया है। सूबेदार को भाजपा संगठन के लेवल पर भी दिक्कत आ रही है, जो उनकी मुश्किलें बढ़ा रही हैं। जातिगत समीकरण को भी पंकज अच्छे से मैनेज करने में सफल होते दिख रहे हैं।
अंबाह: निर्दलीय ने भाजपा प्रत्याशी की मुश्किलें बढ़ाईं, कांग्रेस फायदे में
यहां एक निर्दलीय उम्मीदवार अभिनव छारी ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। सखवार बहुल इस सीट पर बसपा से आए सत्यप्रकाश सखवार को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाकर जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की है। सामने बीजेपी के कमलेश जाटव हैं, जिन्हें भितरघात से नहीं, बल्कि बगावत से खतरा है। सपा के उम्मीदवार पूर्व विधायक बंसीलाल जाटव ने भाजपा को समर्थन कर दिया है, लेकिन निर्दलीय छारी के कारण राह आसान नहीं हैं।
मेहगांव: भाजपा की रणनीति ने कांग्रेस को पीछे छोड़ा
यहां से हेमंत कटारे को कांग्रेस ने देरी से टिकट दिया। इस कारण वे प्रचार में पिछड़ गए थे, लेकिन अब हालात बदले हैं। वे मुकाबले में आ गए हैं। यहां ठाकुर और ब्राह्मण वोट निर्णायक माने जाते हैं। भाजपा से ओपीएस भदौरिया भी इसी फैक्टर के आधार पर आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन मुकाबला दिलचस्प हो गया है। ब्राह्मण वोटर ज्यादा हैं, लेकिन भाजपा की संगठन स्तर की रणनीति ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल रखा है।
गोहद: भाजपा मजबूत लेकिन जिसने 84 गांवों को साध लिया जीत उसी की होगी
इस सीट पर जीत किसकी होगी, यह तय करेगा ठाकुर बहुल 84 गांवों का रूख। कांग्रेस के पूर्व मंत्री गोविंद सिंह इसी समीकरण को वोट में बदलने के लिए लगे हैं। अगर वो ऐसा कर पाए तो कांग्रेस प्रत्याशी मेवाराम जाटव को फायदा हो सकता है। कांग्रेस से भाजपा में आए रणवीर जाटव सहित पार्टी भी 84 गांव के फैक्टर पर काम कर रही है। पार्टी का संगठन भी यहां मजबूत है। ऐसे में फिलहाल यहां भाजपा प्रत्याशी भारी है।
मालवा-5 सीटें
हाटपीपल्या: मुख्यमंत्री की सभा के बाद मनोज चौधरी भारी हो गए
कांग्रेस से भाजपा में आए मनोज चौधरी की स्थिति दलबदल फैक्टर के कारण कुछ दिन पहले तक कमजोर थी, लेकिन अब वह भारी हो गए हैं। चार दिन पहले हुई मुख्यमंत्री की रैली के बाद माहौल बदल गया। संघ भी साथ खड़ा है। पिछले चुनाव में मनोज से हारे तत्कालीन मंत्री दीपक जोशी और उनके समर्थक मन से नहीं जुड़े हैं। यहां सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति, खाती, राजपूत, पाटीदार और सेंधव समाज निर्णायक माने जाते हैं।
पूर्व विधायक राजेंद्रसिंह बघेल के बेटे राजवीर सिंह कांग्रेस से उम्मीदवार हैं। अगले कुछ दिनों में यदि कमलनाथ या अन्य बड़े नेता की सभा होती है तो नए समीकरण बन सकते हैं। मनोज और राजवीर का देहाती जनता से रू-ब-रू होने का तरीका भी इस उपचुनाव में बड़ी भूमिका निभाने वाला है।
सांवेर: कांटे का मुकाबला, मुख्यमंत्री ने सिलावट के लिए पूरी ताकत लगाई
इस सीट पर पूरे प्रदेश की निगाहें हैं। कांग्रेस से भाजपा में आए मंत्री रहे तुलसी सिलावट को जिताने और हराने में दिग्गज लगे हुए हैं। फिलहाल यहां कांटे की टक्कर दिख रही है। भाजपा को इस बात का अहसास है, इसीलिए अब तक यहां मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की पांच सभाएं तो सिंधिया की तीन सभाएं हो चुकी हैं। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी है, इसलिए प्रेमचंद गुड्डू के समर्थन में कमलनाथ दो सभाएं कर चुके हैं।
तुलसी सिलावट को हराने के लिए कांग्रेस में मंत्री रहे जीतू पटवारी महीनेभर से इलाके में डेरा डाले हुए हैं। भाजपा के लिए यह अच्छा है कि पिछले चुनाव में प्रत्याशी रहे राजेश सोनकर पूरी तरह सिलावट के समर्थन में आ गए हैं, क्योंकि पार्टी ने समय रहते ही उन्हें जिलाध्यक्ष का पद नवाज दिया था।
बदनावर: कांग्रेस ने प्रत्याशी बदला, बावजूद भाजपा यहां मजबूत
शुरुआती दौर में राजवर्धनसिंह दत्तीगांव एकतरफा नजर आ रहे थे, लेकिन जैसे-जैसे चुनावी पारा चढ़ता गया, कांग्रेस के कमल पटेल मुकाबले में आ गए। हालांकि, मजबूत यहां भाजपा के दत्तीगांव ही हैं। कांग्रेस से भाजपा में आए राजवर्धन सिंह सिंधिया के नजदीकी हैं। पिछली बार इनकी जीत का अंतर 41 हजार से ज्यादा था। कांग्रेस को यहां प्रत्याशी ढूंढ़ने में ही जद्दोजहद करनी पड़ी। पहले युवा नेता अभिषेक सिंह को टिकट दे दिया था, लेकिन भारी विरोध और पार्टी को मिले इनपुट के बाद फैसला बदलना पड़ा। वरिष्ठ नेता कमल पटेल को उतारा गया।
सुवासरा: कांग्रेस प्रत्याशी को करना पड़ रहा संघर्ष
यहां भाजपा के हरदीप सिंह डंग मजबूत स्थिति में हैं। डंग की छवि मिलनसार नेता के रूप में है। इनका पूरा जीवन राजनीति में बीता। सरपंच से शुरुआत की थी, जिस कारण जमीनी पकड़ मजबूत है। कांग्रेस के राकेश पाटीदार को यहां भारी संघर्ष करना पड़ रहा है। किसान आंदोलन के दौरान हुई आगजनी के लिए भी पोरवाल समाज इनसे खासा नाराज है।
आगर: ऊंटवाल को सहानुभूति मिलती नहीं दिख रही, कांग्रेस के विपिन मजबूत
भाजपा के मनोज ऊंटवाल को यहां संघर्ष करना पड़ रहा है। विधायक पिता मनोहर ऊंटवाल के निधन के बाद खाली हुई इस सीट पर बेटे को सहानुभूति के वोट मिलेंगे, यह मानकर भाजपा ने टिकट दिया था, लेकिन अब ऐसा लग नहीं रहा है। मनोज की जमीनी सक्रियता कभी रही नहीं है, इस कारण उन्हें कदम-कदम पर मुश्किलें आ रही हैं। कांग्रेस के विपिन वानखेड़े का लगातार संपर्क उनकी राह आसान बना रहा है।
निमाड़- 2 सीटें
नेपानगर: भाजपा प्रत्याशी से नाराजगी, कांग्रेस प्रत्याशी की स्थिति बेहतर
कांग्रेस से दो बार चुनाव हार चुके रामकिशन पटेल की स्थिति मजबूत दिख रही है। विधायक पद से इस्तीफा देने के कारण भाजपा में आई सुमित्रा कास्डेकर से लोग नाराज दिख रहे हैं। यहां दोनों प्रत्याशी कोरकू समाज के हैं और ये ही जीत-हार तय करते हैं। लोगों को यह भी शिकायत है कि समस्याओं को लेकर जब सुमित्रा को फोन लगाया जाता है तो कोई दूसरा व्यक्ति उठाता है।
रामकिशन दो बार हारे हैं। इन्हें सहानुभूति का फायदा भी मिल सकता है। 2018 के चुनाव में सुमित्रा से हारी भाजपा की मंजू दादू भी दिखावे के लिए ही साथ दिख रही हैं। कांग्रेस का अगर बूथ मैनेजमेंट पक्का रहा तो भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी।
मांधाता: कांग्रेस की स्थिति मजबूत, भाजपा समीकरण बदलने में जुटी
भाजपा प्रत्याशी नारायण पटेल ने 2018 के चुनाव में 1236 वोट से जीत हासिल की थी। इस बार उनके सामने कांग्रेस के राजनारायण के बेटे उत्तम पाल सिंह मैदान में हैं, जो इस समय मजबूत नजर आ रहे हैं। यहां भाजपा को पसीना बहाना पड़ रहा है। शिवराज सिंह चौहान 29 अक्टूबर चौथी सभा करेंगे। सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर भी सभाएं कर चुके हैं।
लंबे समय से टिकट की उम्मीद में बैठे भाजपा के संतोष राठौर, नरेंद्र तोमर भी पार्टी के साथ खड़े नहीं दिख रहे हैं। 15 साल से सत्ता से बाहर रहने के बावजूद राजनारायण सिंह का गांव-गांव में संपर्क रहा है। जिसका फायदा उनके बेटे को इस चुनाव में मिल सकता है।
भोपाल- 2 सीटें
ब्यावरा: कांग्रेस की जमीनी पकड़ कमजोर, भाजपा के नारायण पवार की अच्छी स्थिति
कांग्रेस के गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई इस सीट पर भाजपा अच्छी स्थिति में है। भाजपा प्रत्याशी नारायण पवार 2018 में एक हजार से भी कम वोटों से हारे थे, लेकिन उनका सामना इस बार कांग्रेस के ऐसे प्रत्याशी रामचंद्र दांगी से है, जो जमीनी पकड़ के मामले पीछे हैं। भाजपा संगठन यहां पूरी मुस्तैदी से लगा हुआ है, इसके मुकाबले कांग्रेस का बूथ मैनेजमेंट कमजोर दिख रहा है।
सांची: भाजपा के प्रभुराम मजबूत, कांग्रेस प्रत्याशी को पहचान का संकट
कांग्रेस से भाजपा में आए प्रभुराम चौधरी कांग्रेस के मदन चौधरी के मुकाबले आगे नजर आ रहे हैं। प्रभुराम के पिछले कुछ काम और उनका व्यक्तिगत संपर्क इसमें अहम भूमिका निभा रहा है। दूसरी तरफ दशकों बाद यह पहला मौका होगा जब शेजवार परिवार सांची के चुनाव में पूरी तरह बाहर है। इससे भाजपा को भीतरघात का खतरा है और कांग्रेस इसे भुनाने की पूरी कोशिश कर रही है। लेकिन, भाजपा हाईकमान के सख्त रवैये के बाद भीतरघातियों के तेवर ढीले पड़ते दिख रहे हैं।
बुंदेलखंड- 2 सीटें
सुरखी: भाजपा की रणनीति से गोविंद सिंह राजपूत मजबूत स्थिति में
यहां कांग्रेस प्रत्याशी पारूल साहू को कांग्रेस से भाजपा में आए गोविंद राजपूत टक्कर दे रहे हैं। कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा ने अंदरूनी रणनीति बनाई है, जिसके चलते समीकरण तेजी से राजपूत के पक्ष में होते दिख रहे हैं। भूपेंद्रसिंह को जिम्मेदारी देते हुए भाजपा ने कह दिया कि यदि यहां पार्टी हारी तो यह आपकी हार मानी जाएगी। 2013 में मात्र 141 वोट से पारुल साहू जीती थीं। उनके कार्यकाल से कम लोग ही संतुष्ट थे।
मलहरा: कांग्रेस मजबूत, लोधी वोट करेगा जीत-हार का फैसला
कांग्रेस की साध्वी रामसिया भारती की स्थिति यहां मजबूत नजर आ रही है। पार्टी बदलने के कारण भाजपा के प्रद्युम्न सिंह लोधी से समाज के ही लोग नाराज दिख रहे हैं। साध्वी छह साल से भागवत कथा कर रही हैं, जिस कारण क्षेत्र में उनकी पकड़ मजबूत है। 5 हजार लोगों ने साध्वी से दीक्षा ली है जो उनके पक्के वोटर होंगे।
महाकौशल- 1 सीट
अनूपपुर: भाजपा के बिसाहूलाल की स्थिति मजबूत
भाजपा के मंत्री बिसाहूलाल साहू की स्थिति मजबूत है। कांग्रेस से यहां विश्वनाथ मैदान में हैं। दोनों प्रत्याशी गोंड समाज से हैं। इस सीट पर गोंड और ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं।