चीन से शुरू हुआ कोरोनावायरस अब तक दुनियाभर में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है। इसके अलावा इस वायरस के कारण अब तक 6 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इससे बचने के लिए दुनिया के कई बड़े वैज्ञानिक और संस्थान वैक्सीन की खोज में लगे हुए हैं। हाल यह है कि 7 महीने गुजर जाने के बाद भी हमारे पास कोरोना से निपटने का कोई पुख्ता हथियार नहीं है।
ऐसे में डॉक्टर्स ने मरीजों के इलाज के लिए कई तरीके अपनाए। इन्हीं में शामिल है कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा थैरेपी। इस थैरेपी के तहत बीमारी से उबर चुके व्यक्ति के खून से प्लाज्मा को अलग कर मरीज के खून में मिलाया जाता है। इस प्लाज्मा में शामिल एंटी बॉडीज मरीज को वायरस से लड़ने में मदद करती हैं। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा को कोविड 19 के गंभीर मरीजों को दिया जा सकता है। इससे उनकी वायरस की क्षमता बढ़ेगी।
क्या होता है प्लाज्मा?
प्लाज्मा इंसान के खून का तरल हिस्सा है। यह 91 से 92 प्रतिशत पानी से बना और हल्के पीले रंग का होता है। यह आपके खून का करीब 55 प्रतिशत हिस्सा है। बचा हुए 45 फीसदी में रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स होती हैं।
कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा को हम "उधार की इम्युनिटी" भी कह सकते हैं। क्योंकि इसे बीमारी से उबर चुके व्यक्ति के खून से निकालकर मरीज को दिया जाता है। इसमें एंटी बॉडीज होती हैं जो कुछ निश्चित समय के लिए प्लाज्मा से चिपक जाती हैं और वायरस के दूसरी बार लौटने पर उससे लड़ने के लिए तैयार रहती हैं।
कोविड 19 में कितनी मददगार है कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा थैरेपी?
यह थैरेपी पहले भी मरीजों की मदद कर चुकी है। डॉक्टर्स 1918 में आए स्पेनिश फ्लू के खिलाफ भी कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन की मदद ले चुके हैं। हाल ही में यह प्रक्रिया सार्स, इबोला, एच1एन1 समेत कई दूसरे वायरस से जूझ रहे मरीजों पर भी की जा चुकी है। कुछ स्टडीज बताती हैं कि यह एच1एन1 और सार्स समेत कई दूसरी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की हालत सुधारने में मदद कर सकता है।
जब एक व्यक्ति कोविड 19 से रिकवर हो जाता है तो उनके खून में एंटी बॉडीज बन जाती हैं, जो वायरस से लड़ने में मदद करती हैं। चूंकि, यह वायरस नोवल है, इसका मतलब कि इस महामारी से पहले कोई भी इसका शिकार नहीं हुआ है। इसलिए हमारे शरीर में पहले से ही इससे लड़ने के लिए एंटी बॉडीज मौजूद नहीं है। हालांकि, एक्सपर्ट्स अभी भी कोविड 19 से जूझ रहे मरीजों में कॉन्वॉलैसेंट प्लाज्मा के असर के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं।
कैसे होता है कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा डोनेशन?
अमेरिकन रेड क्रॉस के मुताबिक, कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा डोनेशन कोविड 19 से पूरी तरह उबर चुके मरीज ही कर सकते हैं। प्लाज्मा डोनेशन के दौरान व्यक्ति के हाथ से प्लाज्मा निकाला जाता है और सुरक्षित तरीके से कुछ सेलाइन के साथ रेड सेल्स वापस डाले जाते हैं। इस प्रक्रिया के कारण यह आम ब्लड डोनेशन से ज्यादा वक्त लेती है।
कुछ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर प्लाज्मा को ब्लड कलेक्ट करने के 24 घंटे के भीतर -18 डिग्री सेल्सियस पर जमा या ठंडा किया जाता है तो इसे 12 महीने तक स्टोर कर रख सकते हैं।
कौन कर सकता है डोनेट
- एफडीए के अनुसार, कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा केवल उन्हीं लोगों से कलेक्ट किया जाना चाहिए जो ब्लड डोनेशन के लिए योग्य हैं।
- अगर व्यक्ति को पहले कोरोनावायरस पॉजिटिव रह चुका है तो ही वे दान कर सकता है।
- संक्रमित व्यक्ति कोविड 19 से पूरी तरह उबरने के 14 दिन बाद ही डोनेशन कर सकता है। डोनर में किसी भी तरह के लक्षण नहीं होने चाहिए।
- दान देने वाले के शरीर में ब्लड वॉल्यूम ज्यादा होना चाहिए। यह आपके शरीर की लंबाई और वजन पर निर्भर करता है।
- डोनर की उम्र 17 साल से ज्यादा और पूरी तरह से स्वस्थ्य होना चाहिए।
- आपको मेडिकल एग्जामिनेशन से गुजरना होगा, जहां आपकी मेडिकल हिस्ट्री की जांच की जाएगी।
यह ब्लड डोनेशन से अलग कैसे है?
इंसान के खून में कई चीजें शामिल होती हैं, जैसे- रेड ब्लड सेल्स, प्लेटलेट्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लाज्मा। ब्लड डोनेशन के दौरान व्यक्ति करीब 300ml रक्तदान करता है, लेकिन प्लाज्मा डोनेशन में व्यक्ति को एक बार उपयोग में आने वाली एफेरेसिस किट के साथ एफेरेसिस मशीन से जोड़ दिया जाता है। यह मशीन प्लाज्मा को छोड़कर खून की सभी कंपोनेंट्स को वापस शरीर में डाल देती है। इस प्रक्रिया में एक ही सुई का इस्तेमाल होता है।
क्या कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा सुरक्षित है?
अमेरिकी की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन संस्था के मुताबिक, आमतौर पर प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन ज्यादातर मरीजों में सुरक्षित होते हैं, लेकिन इससे एलर्जी और दूसरे साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं। अभी तक यह साफ नहीं है कि कोविड 19 के मरीजों को कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा के दूसरे क्या रिएक्शंस हो सकते हैं।
भारत में कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा थैरेपी की स्थिति
भारत में कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा थैरेपी के क्लीनिकल ट्रायल्स की शुरुआत हो चुकी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2 जुलाई को राजधानी स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बायलियरी साइंसेज (ILBS) में देश के पहले कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा बैंक की शुरुआत की। केजरीवाल के मुताबिक, अभी तक इस बीमारी के लिए कोई भी वैक्सीन नहीं है, लेकिन शुरुआती परिणामों से पता चला है कि प्लाज्मा ने कोविड से होने वाली मौतों को कम किया है।
इस बैंक में 200 यूनिट से ज्यादा प्लाज्मा स्टोर किया जा सकता है। इसके साथ कोई भी सरकारी या निजी अस्पताल इस बैंक से कोविड 19 के मरीजों के इलाज के लिए प्लाज्मा ले सकता है। इस डोनेशन सेंटर में 10 प्लाज्माफेरेसिस मशीनें हैं।
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